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रूह को तलाशती लड़की

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कभी कभी मानो लगता है  मेरी रूह उत्तर आई हो तुम्हारे जिस्म में और तुमने लिख डाला हो मेरे ही एहसास को ये जो तुम कह रही हो  ये ही किसी रूह की आवाज़ है। आज कल जान पड़ता है जिस्मो में रूह रहा नहीं करती  दुनिया की खूबसूरत चीज़ो में जाके चुप जाती है  हम ढूंढ़ते रहते है फिर सुकून बेचैन बदन में सुनो तो तुमको कोई खूबसूरत से नज़्म दिखे तो बताना हमको , अपनी रूह को खींच लाएंगे इस बार देखो लड़की  मेरे पास कुछ बेर बचे हैं , लाल रंग के  तुम्हारे होठो से अधिक गहरा वाला लाल रंग  मेरे पास नहीं बचा है सुकून , इसलिए इज़ाज़त नहीं के तुम्हारे मुकाबिल कोई नज़्म खोज सकूँ। देखा कहा था ना मेने  छुप गयी होगी कहीं  तुमने फिर शब्द उकेरे मेने फिर अपनी रूह खोज ली  लग रहा जैसे तुमने अपनी कलम में बंद करके रख दी है  तुम्हारे शब्दों के साथ कटरा कटरा निकलती है रूह हमारी  ऐ लड़की हां कहो लड़के लड़का नहीं , कच्ची दीवार के साये में एक बूढ़ा साया। । साया बड़े लिबास में। … सुना था कभी साया लिबास ओड लेता है उम्र का तकाज़ा कैसे लगाया तुमने जाने क्या मगर , इस तरह आवाज़ डौगी तो सब बिखर जायेगा फि