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Showing posts from August, 2016

एक कहानी माँ की

रात हमारी आँखों से फिर बही कहानी माँ की । खिड़की से सटकर महकी जब रात की रानी माँ की । कढ़ी भात खट्टी चटनी और दाल परोंठे गोभी के, दही दूध अदरक लहसुन सी गंध सुहानी माँ की । बेसन की सोंधी रोटी-सा यह भी मुझको याद अभी, पीठ फेरकर पानी पीकर भूख छुपानी माँ की । घर के सुख में उसने खुद को पूरा - पूरा बाँट दिया, दो जोड़े सूती धोती में गई जवानी माँ की । आज अचानक उसको देखा अम्मा जैसी लगती थी, चाची के टूटे छज्जे पर दही मथानी माँ की । बाबा की वह गिरी हवेली दादी का तुलसी का चौरा, पिछवाड़े की नीम भी जाने उमर खपानी माँ की । जब गैया की पूँछ थी खींची गौरैया का अंडा फोड़ा, मेरे साथ नहीं सोना यह सज़ा सुनानी माँ की । छोड़-छाड़ कर चले गए सब किसको उसका याद रहा, बस बाबू को याद रही वो चिता जलानी माँ की । जब बच्चे के होने में मै तड़फ - तड़फ कर रोई थी, तब देखी थी अपने जैसी पीर उठानी माँ की । मैंने माँ की झुर्री को धीरे- धीरे ओढ़ लिया, कैसे मै बिटिया से कह दूँ बात पुरानी माँ की ।

तुम.. मैं और हमारे सपने...!

तुमसे जितना झगड़ती हूँ प्यार उतना ही बढ़ता जाता है... रोती हूँ तो सपने धुल के नये से हो जाते हैं.. कुछ और चमकीले... तुम्हारे साथ हँसती हूँ तो उन सपनों में इन्द्रधनुषी रँग भर जाते हैं... तुम्हें हँसता देखती हूँ तो उनमें जान आ जाती है... हम तीनों मिल कर जी उठते हैं फिर से... तुम.. मैं और हमारे सपने...!