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Mere hisse ki zami

तुमने बांटी थी  मेरे हिस्से  ज़मीं  मैंने तेरे हिस्से के आकाश को सलामत रखा  तू  लम्हा दर लम्हा  तोड़ता रहा  मैंने दरकते तेरे रिश्ते को जोड़ती रही  हर पल हर सू  तुही दिखा मुझको  और तेरी नज़र मेरे सामने मुझे  ढूडती रही  :- ओजस्विनी'तरु'