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Showing posts from October, 2012

अगर खबर होती

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अगर  खबर  होती  ये इश्क  के सफ़र में  टूटते हैं दिल बार बार  तो हमारा दिल न होता न होता ये सफ़र  न उसकी चुभन  होता तो सिर्फ   इस जिस्म में  पत्थर सा ....उस जगह पे जहा आज टूटे हुए  दिल के टुकड़े हैं  न होते अरमान  न ही स्वप्न  अगर खबर होती  

बदलाव

अगर भगवान् ज्यादा प्रतिभा देता है तो उसके साथ घुन भी लगा देता है ..... या मीठे बेर ही कीड़ा होते हैं ... बस मेरे में 4-6 घंटे बैठकर गहरे अध्यन की प्रवत्ति  होती तो ... में भी कुछ अच्छा कर सकती थी  ... घर की नज़र में मै बीटा होना चाहिए  थी :) ....... एक दिन कंप्यूटर पे जगजीत जी की ग़ज़ल सुन रही थी ...मम्मी ने 4-5 बार आवाज़ लगायी ....मै उनकी आवाज़ नहीं सुन पाई ........ माँ आई और गुस्से में बोली ....कानो में ठेक लगा रखी है .......इतनी आवाज़ लगायी सुनाई नहीं देता .......... मैंने उत्तर दिया " मै  उनसे तो अच्छी हूँ जो बिना कहे बहुत कुछ सुन लेते हैं " मै  जवाब नहीं रोक सकती ....मुझे अपनी बात बोलने में डर नहीं  ,न  हिचकिचाहट होती ...... गोदाम कैसा भी हो , शो रूम सजा रहना चाहिए ......समे मेरे साथ भी है  मै  कितनी ही बुरी सही ....पर अपने आप को अच्छा साबित करने में हमेशा मशगुल रहती हु ..... मै हूँ बदलाव , कब रुकी हूँ मै  आदतों का एक सिलसिला हूँ मै ...... साथ चलती नहीं ज़माने के , रस्ते अपने खोजती हूँ मै ...... रोज़ दिन मेरा पूछता है .....    क्या सिर्फ एक दायर

तेरी खमोशी के सुर

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बचपन में पड़ा था मैंने "एनेर्जी" के बारे में न तो उसे बनाया जा सकता है न ख़तम किया जा सकता है  उसका   जा सकता है वैज्ञानिको ने  ये साबित भी कर दिया युगों पहले कृष्ण के दिए गीता उपदेश अब तलक इस भ्रमंड  में घूम रहे हैं और "बीटल्स" का संगीत भी ..... "साउंड"एनेर्जी का तो समज आता है  पर तुम्हारी   ख़ामोशी  के सुर कैसे  गूंजा करते हैं यु अविराम ....अविरल ...हर पल   मेरी धड़कन में .... किस सप्तक   के सुर हैं ये के कोई और नहीं सुन पाटा इन्हें तुम्हारे दिल से निकलते हैं और मेरे दिल को सुनाई देते हैं बस तुमसे मीलों दूर बेठे हुए भी  मुझ तक पहुचते कैसे हैं ये इस मीलों लम्बे निर्वात में  हैं इन सुरों का संवाहक ?  हसो नहीं ..बताओ न प्लिस  देखो ना मेरी फिजिक्स आज भी बेहद कमज़ोर है ..... 

An Open letter to Dr. APJ Abdul Kalam from the Common Man of India

An Open letter to Dr. APJ Abdul Kalam from the Common Man of India June 17, 2012 Dear Dr. Kalam, Greetings from me, the common man, trying to live a simple life of dignity, across the length and breadth of this country, despite the heaviest of odds stacked against me! It is my guess that as I write this, you are watching with some amusement the twists and turns of the race to the Rashtrapati Bh avan. I am amused too, but in a cynical, sickly kind of way. Not that I expected any better from the people who populate this country’s Parliament and political party offices (after all, I am the reason they are there in the first place), but I was hoping against hope that there might be some dignity left at the bottom of the barrel. Alas, I was wrong! And so the amusement has quickly turned to nausea. And though I am a diehard optimist, who tries to detect a silver lining in any cloud, I am fast wearing of the situation our politicians are plunging this country into. An

एक फलसफा ये भी

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मंजिलों की बात हर वक़्त करते रहते हो दोस्त कभी कभी राह की ठोकर और पसीने की बदबू को भी याद कर लो सपनों की चादर सुन्दर बहुत बुनी है तुमने जुलाहे की थकी उँगलियों की गहरी लकीरों की भी फ़रियाद कर लो ऊंची उड़ान किस परिंदे को अपनी तरफ नहीं बुलाती अपने अन्दर छिपे आसमानों को भी उतना ही आज़ाद कर लो आज की मेहनत ही कल की शोहरत बनती है एक दिन या ख़ुशी से इसे गले लगा लो या फिर अपने कल को बर्बाद कर लो बहुत लम्बी है ये राह, कई सारे पड़ाव मिलेंगे ठंडी छाँव की मीठी नींद के लिए अपने जूनून को जल्लाद कर लो अपने मुकाम को अपनी मुट्ठी में करना हो तो जी हुजूरी की आदत छोड़, ज़रूरी हो ईश्वर से भी वाद-विवाद कर लो क्या ईर्ष्या, कपट, द्वेष, कलह में मिलेगा मित्रों प्यार बांटते रहो, और जो मिले गालियाँ तो उन्हें आशीर्वाद कर लो आस पास तुम्हारे कितना कुछ है जो ठीक नहीं है चुप्पी साधे बैठ गएँ हैं दुनिया वाले, तुम तो एक सिंहनाद कर लो अपने घर पर दीवाली की खूब मनाना खुशियाँ लेकिन एक दिन जा कर किसी दीवाले का गरीबखाना भी आबाद कर लो ईमान की दुकान पर अब नकली खिलौने बचे हैं या अभी बाज़ार से निकल लो, य