Posts

एक कहानी माँ की

रात हमारी आँखों से फिर बही कहानी माँ की । खिड़की से सटकर महकी जब रात की रानी माँ की । कढ़ी भात खट्टी चटनी और दाल परोंठे गोभी के, दही दूध अदरक लहसुन सी गंध सुहानी माँ की । बेसन की सोंधी रोटी-सा यह भी मुझको याद अभी, पीठ फेरकर पानी पीकर भूख छुपानी माँ की । घर के सुख में उसने खुद को पूरा - पूरा बाँट दिया, दो जोड़े सूती धोती में गई जवानी माँ की । आज अचानक उसको देखा अम्मा जैसी लगती थी, चाची के टूटे छज्जे पर दही मथानी माँ की । बाबा की वह गिरी हवेली दादी का तुलसी का चौरा, पिछवाड़े की नीम भी जाने उमर खपानी माँ की । जब गैया की पूँछ थी खींची गौरैया का अंडा फोड़ा, मेरे साथ नहीं सोना यह सज़ा सुनानी माँ की । छोड़-छाड़ कर चले गए सब किसको उसका याद रहा, बस बाबू को याद रही वो चिता जलानी माँ की । जब बच्चे के होने में मै तड़फ - तड़फ कर रोई थी, तब देखी थी अपने जैसी पीर उठानी माँ की । मैंने माँ की झुर्री को धीरे- धीरे ओढ़ लिया, कैसे मै बिटिया से कह दूँ बात पुरानी माँ की ।

तुम.. मैं और हमारे सपने...!

तुमसे जितना झगड़ती हूँ प्यार उतना ही बढ़ता जाता है... रोती हूँ तो सपने धुल के नये से हो जाते हैं.. कुछ और चमकीले... तुम्हारे साथ हँसती हूँ तो उन सपनों में इन्द्रधनुषी रँग भर जाते हैं... तुम्हें हँसता देखती हूँ तो उनमें जान आ जाती है... हम तीनों मिल कर जी उठते हैं फिर से... तुम.. मैं और हमारे सपने...!

रूह को तलाशती लड़की

Image
कभी कभी मानो लगता है  मेरी रूह उत्तर आई हो तुम्हारे जिस्म में और तुमने लिख डाला हो मेरे ही एहसास को ये जो तुम कह रही हो  ये ही किसी रूह की आवाज़ है। आज कल जान पड़ता है जिस्मो में रूह रहा नहीं करती  दुनिया की खूबसूरत चीज़ो में जाके चुप जाती है  हम ढूंढ़ते रहते है फिर सुकून बेचैन बदन में सुनो तो तुमको कोई खूबसूरत से नज़्म दिखे तो बताना हमको , अपनी रूह को खींच लाएंगे इस बार देखो लड़की  मेरे पास कुछ बेर बचे हैं , लाल रंग के  तुम्हारे होठो से अधिक गहरा वाला लाल रंग  मेरे पास नहीं बचा है सुकून , इसलिए इज़ाज़त नहीं के तुम्हारे मुकाबिल कोई नज़्म खोज सकूँ। देखा कहा था ना मेने  छुप गयी होगी कहीं  तुमने फिर शब्द उकेरे मेने फिर अपनी रूह खोज ली  लग रहा जैसे तुमने अपनी कलम में बंद करके रख दी है  तुम्हारे शब्दों के साथ कटरा कटरा निकलती है रूह हमारी  ऐ लड़की हां कहो लड़के लड़का नहीं , कच्ची दीवार के साये में एक बूढ़ा साया। । साया बड़े लिबास में। … सुना था कभी साया लिबास ओड लेता है उम्र का तकाज़ा कैसे लगाया तुमने जाने क्या मगर , इस तरह आवाज़ डौगी तो सब बिखर जायेगा फि

Dark as my soul

Image
कह कर जाना नहीं होता. कहने का अर्थ होता है रोक लिया जाना. बहला लिया जाना. समझा दिया जाना. सवालों में बाँध दिया जाना. कन्फर्म नहीं तो कन्फ्यूज कर दिया जाना. जब तक हो रही है बात कोई नहीं जाता है कहीं. यहाँ तक कि ये कहना कि 'मैं मर जाउंगी' इस बात का सूचक है कि कुछ है जो अभी भी उसे रोके रखता है. उसे उम्मीद है कि कोई रोक लेगा उसे. कोई फुसला देगा. कोई कह देगा कोई झूठ. कि रुक जाओ मेरे लिए. जाना होता है चुपचाप. अपनी आहट तक समेटे हुए. किसी को चुप नींद में सोता छोड़ कर. जाना होता है समझना सिद्धार्थ के मन के कोलाहल को. जाना होता है खुद के अंधेरों में गहरे डूबते जाना और नहीं पाना रोशनी की लकीर को. मुझे आजकल क्यूँ समझ आने लगा है उसका का चुप्पे उठ कर जाना. वे कौन से अँधेरे थे गौतम. वह कौन सा दुःख था. मुझे क्यूँ समझ आने लगा है उसका यूँ चले जाना. मुझे रात का वो शांत पहर क्यूँ दिखता है जब पूरा महल शांत सोया हुआ था. रेशम की चादरें होंगी. दिये का मद्धम प्रकाश होगा. उसने जाते वक़्त यशोधरा को देखा होगा? सोती हुयी यशोधरा के चेहरे पर कैसा भाव होगा? क्या उसे जरा भी आहट नहीं महसूस हुयी

विस्मृति का विलास सबके जीवन में नहीं लिखा होता प्रिये

Image
किसी शहर में भूल जाना भी याद करना जितना आसान होगा. डायरी में लिख दिया अमुक का बर्थडे फलां फलां डेट को है. उस दिन याद से उसे मुबारकबाद कह देनी है नहीं तो साला बर्थडे पर बुलाएगा नहीं और खामखा एक केक का नुकसान हो जाएगा. मेरा गरीब पेट ऐसे कुछ ऐय्याशियों के भरोसे जीता है. उत्सव के ये कुछ दिन छिन गए तो कसम से एक दिन ओल्ड मौंक में जहर मिला कर पी जायेंगे. वैसी ही एक दिन लिख देना है डायरी में कि फलाने को आज से चौदह दिन बाद भूल जाना है. बस. अब कोई माई का लाल हमको आज के चौदह दिन बाद याद नहीं दिला पायेगा कि कमबख्त को याद कर के देर रात टेसुआ बहाए थे और भों भों रोये थे कि उसके बिना जिंदगी बेकार है. मगर फिर कोमल मन कहता है...विस्मृति का विलास सबके जीवन में नहीं लिखा होता प्रिये...याद का ताजमहल बनाने वाले की नियति यही होती है कि एक कोठरी से उसे देख कर बाल्टी बाल्टी आंसू बहाया करे. मैं देख रही हूँ कि मैं लिखना कोमल चाहती हूँ मगर मेरे अन्दर जो दो भाषाएँ पनाह पाती हैं उनमें जंग छिड़ी हुयी है. एक उजड्ड मन चाहता है उसे बिहार की जितनी गालियाँ आती हैं, शुद्ध हिंदी में दे कर अपने मन

खाली दिमाग का घंटाघर!

Image
यूँ ही राह चलते क्या तलाशते रहते हो जब किसी से यूँ ही नज़रें मिल जाती हैं...किसी को तो ढूंढते हो. वो क्या है जो आँखों के सामने रह रह के चमक उठता है. आखिर क्यूँ भीड़ में अनगिन लोगों के होते हुए, किसी एक पर नज़र ठहरती है. वो एक सेकंड के हजारवें हिस्से में किसी की आँखों में क्या नज़र आता है...पहचान, है न? एक बहुत पुरानी पहचान. किसी को देख कर न लगे कि पहली बार देखा हो. जैसे कि इस खाली सड़क पर, खूबसूरत मौसम में अकेले चलते हुए तुम्हें उसे एक पल को देखना था...इतना भर ही रिश्ता था और इतने भर में ही पूरा हो गया. रिश्तों की मियाद कितनी होती है? कितना वक़्त होता है किसी की जिंदगी में पहली प्राथमिकता होने का...आप कभी भी ताउम्र किसी की प्राथमिकता नहीं बन सकते, और चीज़ें आएँगी, और लोग आयेंगे, और शहर मिलेंगे, बिसरेंगे, छूटेंगे...कितना बाँधोगे मुट्ठी में ये अहसास कि तुम्हारे इर्द गिर्द किसी की जिंदगी घूमती है. कुछ लोग आपके होते हैं...क्या होते हैं मालूम नहीं. वो भी आपसे पूछेंगे कि उनका आपसे रिश्ता क्या है तो आप कभी बता नहीं पायेंगे, किसी एक रिश्ते में बाँध नहीं पाएंगे. प्यार कभी कभी ऐसा अमूर्त ह

वो छोटी सी वजह हो मेरे जीने की...

Image
कुछ जवाबों का हमें ता उम्र इंतज़ार रहता है...खास तौर से उन जवाबों का जिनके सवाल हमने कभी पूछे नहीं, पर सवाल मौजूद जरूर थे...और बड़ी बेचारगी से अपने पूछे जाने की अर्जी लिए घूमते थे...और हम उससे भी ज्यादा बेदर्द होकर उनकी अर्जियों की तरफ़ देखते तक नहीं थे... जिसे नफरत तोड़ नहीं सकती...उपेक्षा तोड़ देती है, नफरत में एक अजीब सा सुकून है, कहीं बहुत गहरे जुड़े होने का अहसास है, नफरत में लगभग प्यार जितना ही अपनापन होता है, बस देखने वाले के नज़रिए का फर्क होता है... कुछ ऐसे जख्म होते हैं जिनका दर्द जिंदगी का हिस्सा बन जाता है...बेहद नुकीला, हर वक्त चुभता हुआ, ये दर्द जीने का अंदाज ही बदल देता है...एक दिन अचानक से ये दर्द ख़त्म हो जाए तो हम शायद सोचेंगे कि हम जो हैं उसमें इस दर्द का कितना बड़ा हिस्सा है...जिन रास्तों पर चल के हम आज किसी भी मोड़ पर रुके हैं, उसमें कितना कुछ इस दर्द के कारण है...इस दर्द के ठहराव के कारण कितने लोग आगे बढ़ गए...हमारी रफ़्तार से साथ बस वो चले जो हमारे अपने थे...इस दर्द में शरीक नहीं...पर उस राह के हमसफ़र जिसे इस दर्द ने हमारे लिए चुना था। मर जाने के लिए एक वजह ह