वो छोटी सी वजह हो मेरे जीने की...

कुछ जवाबों का हमें ता उम्र इंतज़ार रहता है...खास तौर से उन जवाबों का जिनके सवाल हमने कभी पूछे नहीं, पर सवाल मौजूद जरूर थे...और बड़ी बेचारगी से अपने पूछे जाने की अर्जी लिए घूमते थे...और हम उससे भी ज्यादा बेदर्द होकर उनकी अर्जियों की तरफ़ देखते तक नहीं थे...


जिसे नफरत तोड़ नहीं सकती...उपेक्षा तोड़ देती है, नफरत में एक अजीब सा सुकून है, कहीं बहुत गहरे जुड़े होने का अहसास है, नफरत में लगभग प्यार जितना ही अपनापन होता है, बस देखने वाले के नज़रिए का फर्क होता है...


कुछ ऐसे जख्म होते हैं जिनका दर्द जिंदगी का हिस्सा बन जाता है...बेहद नुकीला, हर वक्त चुभता हुआ, ये दर्द जीने का अंदाज ही बदल देता है...एक दिन अचानक से ये दर्द ख़त्म हो जाए तो हम शायद सोचेंगे कि हम जो हैं उसमें इस दर्द का कितना बड़ा हिस्सा है...जिन रास्तों पर चल के हम आज किसी भी मोड़ पर रुके हैं, उसमें कितना कुछ इस दर्द के कारण है...इस दर्द के ठहराव के कारण कितने लोग आगे बढ़ गए...हमारी रफ़्तार से साथ बस वो चले जो हमारे अपने थे...इस दर्द में शरीक नहीं...पर उस राह के हमसफ़र जिसे इस दर्द ने हमारे लिए चुना था।


मर जाने के लिए एक वजह ही काफ़ी होती है...पर जिन्दा रहने के लिए कितनी सारी वजहों की जरूरत पड़ती है...कितने सारे बहाने ढूँढने पड़ते हैं...कितने लोगों को शरीक करना पड़ता है जिंदगी में, कितने सपने बुनने पड़ते हैं, कितने हादसों से उबरना पड़ता है और मुस्कुराना पड़ता है...


मौत उतनी खूबसूरत नहीं है जितनी कविताओं में दिखती है...


कविताओं में दिखने जैसी एक ही चीज़ है...इश्क...एक ही वजह जो शायद समझ आती है जीने की...प्यार वाकई इतना खूबसूरत है जितना कभी, कहीं पढ़ा था...और शायद उससे भी ज्यादा...


और तुम...बस तुम...वो छोटी सी वजह हो मेरे जीने की...



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