likha meine

सारी रात बैठकर  अपनी बर्बादी  का अफसाना 
लिखा मैंने 
जब भी कलम उठायी ,खुद को ही दीवाना 
लिखा मैंने 
ये वादियाँ ,ये मंज़र,ये चाँद सितारे,लगते हैं अपने से 
इन अपनों के बिच में अपने ही दिल को बेगाना 
लिखा मैंने 
कभी साथ रहते थे ,मेरा 
साया बनकर 
आज इन्ही प्यार के लम्हों को ,बीता ज़माना
 लिखा मैंने 
वो मुझसे प्यार करके भी,रहते हैं गैरों के साथ 
उनकी इस बेवफाई को भी ,मज़बूरी का बहाना 
लिखा मैंने 
जब जल गए मेरे अरमान ,उनके पहलु में 
तब खुद को शमा और उसको एक परवाना 
लिखा मैंने 
जब लगी हाथ मेरे मुकद्दर की कलम ,
खुदा जानता है,
उसको तकदीर में ज़माना और खुद के लिए 
विराना 
लिखा मैंने। 
 

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