------ज़माना बदलते हुए ------
गाँव की कच्ची पगडंडी से , शहर की सड़कों पे चलते हुए , इंसान से ईमान निकलते हुए, मैंने देखा ज़माना बदलते हुए . रूह की भूख से जद्दोजहद ,रोटी को तरसते आलमो की हद , उसूलों को पेट में पिघलते हुए ,मैंने देखा ज़माना बदलते हुए उड़ने को तैयार बुलबुलों की खुशी ,अंधेरों में क़ैद कमसिन ज़िंदगी जल्लादों को कलियां मसलते हुए ,मैंने देखा ज़माना बदलते हुए बिकते हुए दूल्हों की कतार ,शादियों में चलता हुआ व्यापार , बेटियों को गोश्त सा जलते हुए,मैंने देखा ज़माना बदलते हुए. मंदिरों -मस्जिदों के ये खँडहर तमाम ,इंसानों के बजाय हिन्दू -ओ- मुसलमान , पैरों तले इंसानियत कुचलते हुए , मैंने देखा ज़माना बदलते हुए. आदमी से सहमी हुई कायनात ,बेजुबानो पे ज़ुल्मो के ये दिन - रात अपने लालच में सबकुछ निगलते हुए , मैंने देखा ज़माना बदलते हुए. तरक्की की खुशफहमियों में मगरूर ,आदर्शों को करते हुए चूर चूर , आदमी से आदमी के होंठ मिलते हुए , मैंने देखा ज़माना बदलते हुए. गाँव की कच्ची पगडंडी से , शहर की सड़कों पे चलते हुए , इंसान से ईमान निकलते हुए, मैंने देखा ज़माना बदलते हुए .
nyc intellect !
ReplyDeletethnks
ReplyDeleteVery nice understanding as an individual of oneness with the uni-verse... Keep it up, you will go a long way in writing your own script of success... Keep on exploring life.. Wish you happy writing... :)
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ReplyDeleteਇਹ ਇਤਿਹਾਸ ਹੈ,