समझा नहीं मुझे
एक शख्स पास रहकर के
समझा नहीं मुझे
इस बात का मलाल है
शिकवा नहीं मुझे
में उससे बेवफाई का इलज़ाम कैसे दू
उसने तो सिद्दत से ही चाहा नहीं मुझे
पत्थर समाज कर पाऊं से ठोकर लगा दिया
अफ़सोस तेरी आँख ने परखा नहीं मुझे
क्या उमीदें भान्द्के आये थे सामने
उस ने तो आँख भर के देखा नहीं मुझे
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