रात ........देती है कभी कभी दिल को सुकून

कभी-कभी मुझे रात का  बड़ी बेसब्री से इंतज़ार रहता है। मुझे लगता है , जैसे  अगला सवेरा मुझे कोई नयी सौगात देगा ........या शायद .......आने वाले सवेरे से मुझे  उम्मीद होती हैं। पर  अपनी    ज़िन्दगी  की रातों से मुझे दर लगता है कभी कभी  ..................क्युकी ज़िन्दगी का अँधेरा ...अक्सर मेरी उन्मीदो को दबा देता है .....या कहूँ  के मुझे उस अँधेरे में कुछ दीखता नहीं है। पर फिर भी अँधेरा भी कभी कभी अपने आप में  होता है ...............अँधेरा , सूरज  की उस तेज़ रौशनी से कई   अच्छा  होता है  ............क्युकी मै अँधेरे को अपनी आँखों से देख सकती हूँ ...........देख सकती हूँ ,उसका  रंग , 'शुन्य ' पर  " उजाला"  मतलब उजाले का श्रोत ...मुझे देखने लायक  नहीं छोड़ता ....सूरज की तेज़ रौशनी मेरी आँखों     की रौशनी से कई गुना तेज़ है।
मेरी द्रष्टि गूम हो जाती है  , अगर मैं कुछ पालो  के लिए ही  सही सूरज को एकटक  लगा के देख लूँ ......
उस वक़्त अँधेरे से ज्यादा दर्दनाक आँखों  के सामने छा जाने वाला अँधेरा होता है। जिसमे हम चाहते हुए भी  कुछ देखने योग्य नहीं रहते ........ठीक वैसे ही जीवन के उतार चड़ाव होते हैं .....-सुख  -दुःख
मुझे दुखो से ज्यादा लगाव है .....की वो मुझे छोटी सी ख़ुशी देके अकेला नहीं छोड़ते ...ब्शुत ज्यादा खुशिया  ठीक सूरज के उस तेज़ रौशनी की तरह है ....जो बहुत ही  भयानक है ........
कभी कभी कोई चीज़ जितनी खुबसूरत होती है उससे ज्यादा भयानक ............
अब आप सोच रहे होगे के खुबसूरत का भयानक से क्या तालमेल। पर  ऐसी अनोखी चीज़े भी कुछ ही होती हैं .................................
जैसे ये दुनिया
ये दुनिया ..............जितनी खुबसूरत है  उससे कई गुना भयानक ...........
कितना खुबसूरत है प्रकृति का नियम ...." "बदलाव " " जो   ज़रूरी नहीं के   खुबसूरत हो ...............
पर कितना खुबसूरत होते हुए भी भयानक है प्रकृति का नियम
बदलाव कुछ भी हो सकता है।..कैसा भी हो सकता है।जितना सुन्दर हो ,,,,,हो सकता है कभी डरावना भी हो .....पर अच्छा है क्युकी बदलाव है ......बदलाव होने के बाद जो हासिल हो  वो अच्छा हो।.....
मुझे  लगता है ...जो बदलाव मेरी ज़िन्दगी में हुए वो डरावने  थे ....पर मुझे अच्छे लगे जैसे भी हुए .....उन डरावने और भयानक बदलावों ने मुझे  होने वाले  बदलावों के लिए और भी मजबूत कर देती हैं .........
मै सम्हाल  गयी


समहल गयी  के दुबारा  कोई वैसी ही ठोकर  न लगे जैसी लग चुकी है .................
ये छोटी छोटी गलतिय भी ठीक वैसी ठोकरों की तरह होती है जो हमे बचपन में लगती हैं .........जिन ठोकरों के लगने से हमे चोट तो लगती है पर मिलता है होसला उठने का और फिर से चलने का ......अगर मेने अपनी ज़िन्दगी में  गलतिय नहीं की होती  तो .......पता नहीं आज मै वैसी होती ...जैसी हु
नहीं ...तब तो मै  बिलकुल कमज़ोर, सहमी सी लड़की होती ,जो हर कठनाई से टूट  जाती।
क्युकी गलतिय भी तो  कठिनाइयों की तरह थी ..........शायद मेरा अस्तित्व बिखर जाता ...इस रौशनी में।


रात को जलाने कि आदत जाती नहीं

रात को जलाने कि आदत जाती नहीं

हर सुबह से जाने क्यों इतनी उम्मीद होती हैं

 सूरज कि पहली किरण के संग

कल के बिखरे सपनो को जोड़

नये सपनो को तरास जाता हु

Comments

  1. बहुत सुन्दर लिखा है ओजस्विनी....
    दिल को छूने वाला...

    अनु

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  2. Hey!.. Its really impressive the way you write. bahot hi khoobsurat likhti hain aap. All the best

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