ज़िन्दगी

मै  आज भी ,
हस्ती हूँ 
खिलखिलके ,
पर उसमे गूंज नहीं होती 
मै  आज भी ...
चलती हूँ ज़मी पर 
पर  कदमो में रफ़्तार नहीं होती 
में आज भी  देखती  हु 
ख्वाब  इतने ...
पर उनमे  अब जान नहीं होती 
जानते हो क्यों ???
मै बंट गयी हु 
दो वर्गो में 
एक  उनके लिए 
जो खाते है जीने को 
और वो  
 जीते है खाने को 
बहुत सकुचा गयी हु
एक आईने के दो  टुकडो 
में बंट  हूँ 
ज़िन्दगी हु
अमीरों की और 

गरीबो की!!!

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