कैसे लिखू कुछ

क्या लिखू  बताओ ज़रा ,तुम ही कुछ बता दो ,क्या सुनना चाहते हो !!! मै  वाही लिख दूंगी  ..............
मेरे पास मेरा कुछ लिखने को है ही कहाँ ......जो कुछ लिख सकूँ !.....कभी कभी दुसरो के लिए भी लिखना चाहिए !..तुम्ही ने तो बताया था ....पर तुम दुसरे हो ही नहीं ,बताओ फिर कैसे कुछ लिखू ??? तुम खुद कहते हो के वो लिखो जो अच्छा लगे ,तुम्हे भी और सबको .....पर क्या तुमने कभी सोचा है के ....मेरा सबकुछ तो तुम ही हो ......तुम भी सोच रहे होगे कितनी उलझी हुई बाते करती हु मै ..है ना !!! :)
पर मुझे अच्छा लगता है जब तुम मुस्कुरा के सुनते हो और फिर कहते हो,,,,
तुम क्या कह रही हो कुछ समाज नहीं आया। और मै  झुंजला के मुह फेर लेती हु ...और तुम मुझे वाही सब दोहरा के सुना देते हो जो मै  तुम्हे कहती हु .....और मुझे भी मजबूरन बोलना पड़ता है ...तुम क्या बोल रहे हो?कुछ समझ ही नहीं आ रहा !!! फिर दोनों खिलखिला कर हस देते है ..यही तो मुझे अच्छा लगता है ...तुम्हे हसाना  ,और फिर खुद हस  जाना :)

कैसे लिखू कुछ 
जो कहती हु 
 तुमसे 
जो सुनती हु
 वो तुम्हारी 
जो मुज्मे है 
वो तुझमे है ....
तो कैसे  
कुछ लिख दू 
जो कोई  और पड़े 
मेरे हर अल्फाज़ में तुम हो 
मेरी सोच का 
आगाज़ भी तुम हो 
तो बताओ ज़रा 
कैसे कुछ लिख पाऊँगी 
जिसमे तुम्हारा ज़िक्र न हो ???
बताओ ज़रा !!


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