आखिरी मुलाकात

कुछ गीत ऐसे होते हैं कि सुनकर जैसे दिल में कोई हूक सी उठने लगती रहती है। बरसों पुराने कुछ बिछडे लोग याद आने लगते हैं, कुछ जख्म फ़िर से हरे हो जाते हैं।
कुछ ऐसा ही है बाज़ार का ये गाना "देख लो आज हमको जी भर के"। हालात, वक्त और बिछड़ने का अंदाज़ जुदा होने के बावजूद सुनते ही कोई पहचानी गली याद आ जाती है, गीली आँखें याद आती हैं, और एक शहर जैसे जेहन में साँसे लेने लगता है फ़िर से।
इश्क होता ही ऐसा है, गुज़र कर भी नहीं गुज़रता, वहीँ खड़ा रहता है। जब कोई ऐसा गीत, कोई ग़ज़ल पढने को मिलती है तो जैसे एक पल में मन वहीँ पहुँच जाता है। जहाँ जाना तो था पर लौट कर आना नहीं था। वो आखिरी कुछ लम्हे जब वक्त को रोक लेने कि ख्वाहिश होती है, किसी को आखिरी लम्हे तक ख़ुद से दूर जाते देखना, अपनी मजबूरियां जानते हुए, ये जानते हुए कि वो हँसते खिलखिलाते पल अब कभी नहीं आयेंगे।
वो आखरी मुलाकात...कुछ ऐसी बातें जो कही नहीं जा सकीं, एक खामोशी, एक अचानक से आई हुयी दूरी...और वही कम्बक्त वक्त को रोक लेने कि ख्वाहिश।

पूजा 

Comments

Popular posts from this blog

a drop in the ocean ......a will in itself

विस्मृति का विलास सबके जीवन में नहीं लिखा होता प्रिये

------ज़माना बदलते हुए ------