आखिर वो चाहता क्या है .....
आखिर वो चाहता क्या है ....कहता है मुझसे प्यार करता है और मेरा दिल दुखाने का कोई भी मौका नहीं छोड़ता है .....
अभी कल की ही तो बात थी ...उसने कहा था कुछ भी पहन के आजाना ..मैंने पूछा भी था ' क्या पहन कर आऊ में ' कुछ भी पहन कर आजाना उसने यही कहा था जो तुमको अच्छा लगे .....
कितनी खुश थी में के मुझे देख के उसकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहेगा ....मुझे देखते ही मुजको अपने गले से लगा लेगा वो ...प्यार जो करता है मुझसे ..... खिड़की से देखा था मैंने ...और बैग उठा कर अपने हाथो में रख लिय।वो बेठने को पूछता उससे पहले ही मैंने उसके लिए जगह कर दी थी सीट पर बस में .....
वो आके बैठ गया उसकी एक नज़र मुझपर थी दूसरी मेरे कपड़ो पर। अपने कानो में मोबाइल का हेड फ़ोन लगा लिया और एक कान से निकल दिया ..मेरी बात सुनने को शायद नहीं लगाया था .... क्या हुआ ...ऐसे क्यों बेठे हो मुह फुला कर मैंने पूछा था ...वो कुछ नहीं बोला ...मेरे अरमानो पर जैसे को कटाक्ष वार कर रहा हो ....
उसकी चुप्पी चुभ रही थी मुझे पर वो कुछ नहीं बोल......बस से उतरे और कॉलेज में घुसने तक उसने कुछ न कहा ..अन्दर पहुचते ही मेरे गले से स्कार्फ खिच लिया ..जैसे उसकी चुप्पी का बाँध टूट गया हो न आव देखि न ताव ,बस मेरा हाथ खीचकर अंदर ले गया .....
ये सब क्या है ....बिलकुल गंवार हो क्या ....बोल दो के कपडे नहीं है मेरे पास ....तुमसे मन के कपडे पहन कर आने को कहा तो तुम ये सब पहन कर आओगि… और लोगो को ही देख लिया करो जब खुद समझ नहीं आता क्या पहनना है क्या नहीं ....पूरा गला दिख रहा है। पुरे रास्ते ऐसे ही बेथ कर आई होगी न .....
मै बोलना चाहती थी ...पर ये क्या हुआ ...कुछ समझती उससे पहले उसने आईसी बात बोल्दी के मै कुछ भी बोलने लायक न रही " पहले भी यही ऐसे ही कपडे पहनती होगी न ...सब कुछ दीखता है ..शारीर के पुरे कट्स दीखते है ...सबने तो सब देख लिया ...अब मेरे लिए बचा ही क्या .. '
मानो उसके इन शब्दों ने अन्दर तक से चिर दिया हो मुझे ....मेरे आँखों ने भी बर्दाश की सीमा पर करली थी ...कुछ समझ ही नहीं आरहा था के कैसा प्यार है ये ...वो आखिर मुझसे चाहता क्या है ....
अभी कल की ही तो बात थी ...उसने कहा था कुछ भी पहन के आजाना ..मैंने पूछा भी था ' क्या पहन कर आऊ में ' कुछ भी पहन कर आजाना उसने यही कहा था जो तुमको अच्छा लगे .....
कितनी खुश थी में के मुझे देख के उसकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहेगा ....मुझे देखते ही मुजको अपने गले से लगा लेगा वो ...प्यार जो करता है मुझसे ..... खिड़की से देखा था मैंने ...और बैग उठा कर अपने हाथो में रख लिय।वो बेठने को पूछता उससे पहले ही मैंने उसके लिए जगह कर दी थी सीट पर बस में .....
वो आके बैठ गया उसकी एक नज़र मुझपर थी दूसरी मेरे कपड़ो पर। अपने कानो में मोबाइल का हेड फ़ोन लगा लिया और एक कान से निकल दिया ..मेरी बात सुनने को शायद नहीं लगाया था .... क्या हुआ ...ऐसे क्यों बेठे हो मुह फुला कर मैंने पूछा था ...वो कुछ नहीं बोला ...मेरे अरमानो पर जैसे को कटाक्ष वार कर रहा हो ....
उसकी चुप्पी चुभ रही थी मुझे पर वो कुछ नहीं बोल......बस से उतरे और कॉलेज में घुसने तक उसने कुछ न कहा ..अन्दर पहुचते ही मेरे गले से स्कार्फ खिच लिया ..जैसे उसकी चुप्पी का बाँध टूट गया हो न आव देखि न ताव ,बस मेरा हाथ खीचकर अंदर ले गया .....
ये सब क्या है ....बिलकुल गंवार हो क्या ....बोल दो के कपडे नहीं है मेरे पास ....तुमसे मन के कपडे पहन कर आने को कहा तो तुम ये सब पहन कर आओगि… और लोगो को ही देख लिया करो जब खुद समझ नहीं आता क्या पहनना है क्या नहीं ....पूरा गला दिख रहा है। पुरे रास्ते ऐसे ही बेथ कर आई होगी न .....
मै बोलना चाहती थी ...पर ये क्या हुआ ...कुछ समझती उससे पहले उसने आईसी बात बोल्दी के मै कुछ भी बोलने लायक न रही " पहले भी यही ऐसे ही कपडे पहनती होगी न ...सब कुछ दीखता है ..शारीर के पुरे कट्स दीखते है ...सबने तो सब देख लिया ...अब मेरे लिए बचा ही क्या .. '
मानो उसके इन शब्दों ने अन्दर तक से चिर दिया हो मुझे ....मेरे आँखों ने भी बर्दाश की सीमा पर करली थी ...कुछ समझ ही नहीं आरहा था के कैसा प्यार है ये ...वो आखिर मुझसे चाहता क्या है ....
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