एक शाम कुछ यूँ हुआ



एक शाम कुछ यूँ हुआकायनात उलट सी गई,फलक समंदर में

तब्दील होने लगा



बादल लहरों के माफिक

दौड़ -दौड़ साहिल तलाशने लगे

ज्वार-भाटे के गर्जन .....

आकाश में गश्त करने लगे

धरती की कश्ती में सिक्का फेंक सूरज लुटने ही वाला था

के

चाँद ने आकर बाजी पलट दी



(ना जाने कितनो की बालाएं अपने सर लेगा

ये चाँद)



आसमां ठहर गया

सागर नहीं बना,

धरती भी अपनी जगह कायम

पाताल होने से बच गई



अब के बार कुदरती

प्यादों ने कोई साजिश की तो

कसम से !

ए खुदा सुन !

क़यामत तेरे घर होगी


समझा दे अपनी कुदरत को

हम खुदाबन्द ..

इन्साफपरस्त लोग हैं

अदालत ज़मी पे बैठेगी

पेशी भी यहीं पड़ेगी

सिर्फ तारीखे मिलेंगी

लगाना फिर चक्कर पे चक्कर


बहरहाल !

केस फाइल नहीं किया है

मामला मुल्तवी हुआ...

बर्खास्त नहींऑन रिकॉर्ड ना सही

ऑफ रिकॉर्ड है


एक और बात -

सिर्फ तुम ही नहीं रखते बही खाता

फाइल री-ओपन यहाँ भी होती हैं

और सेटेलमेंट भी

करो अब चुनाव

क्या चाहते हो ?

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