कितनी अजीब सी बात है .... एक तरफ मोहब्बत और एक तरफ दोस्ती .... उल जुलूल उलझाने , उलझनों के बिच फसी मै ... खुद को खोजती हुई हर बार खुद को खोती चली जा रही हूँ .... तुमको पाने की तलाश मै .... और तुम्हे न खोने की आस में ..... एक तुम हो .... मेरा प्यार , दीदार मेरा ,आशिकी की हद से परेह ..तुम हो .... और एक तुम हो , मेरी आस , विश्वास ,दोस्ती ...तुमको खो देना ,खुद को खो देना ... ज़िन्दगी के हर मोड़ पर हमेशा दोराहे मिले मुझको ... जो एक ही मंजिल को जाते है .... किसपे चलू ..किसके संग चलू ..... प्यार ,दोस्ती ..... कभी एक ही शख्स से नहीं होते ..... जब तुम दोस्त थे ...तुम से हम हुए ....और हो गया इकरार ,पैदा हुआ प्यार ..... क्यों मार दिया दोस्ती को .... क्या ज़रूरी है एक को मार के दुसरे को पा लेना ..... खो तो दिया मेने खुद को , दोस्ती जो खो गयी पाने के लिए तुमको ,,.... पा लिया प्यार ...... एक तुम हो जो आज भी मुझे खोज रहे हो , दोस्त जो हो ..... भला कैसे खोने देते तुम मुझको खो न जाते तुम , उल जुलूल ...