दिये से मिटेगा न मन का अंधेरा
घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूँ कर लें किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाये -- निदा फाज़ली नवरात्र के आगमन के साथ ही त्योहारों का मौसम शुरू हो गया है ... अभी कल ही नौ दिनों के व्रत , उपवास और कन्या पूजन के साथ ही नवरात्र संपन्न हुए हैं और आज विजयदशमी है ... बुराई पर अच्छाई की , झूठ पर सच की , अहम पर विवेक की विजय का पर्व ... और कुछ ही दिनों में दीपावली आएगी और पूरी धरा रौशनी में नहा जायेगी ... हर सिम्त सिर्फ रौशनी और जगमगाहट ... नए कपड़े , पटाखे , खुशियाँ और मिठाइयाँ ... बचपन से ही हम सब बड़े चाव के साथ ये सब त्यौहार मनाते आ रहे हैं ... है ना ? सच है आख़िर किसे ये खुशियों से भरे त्यौहार नहीं पसंद होंगे ... इनके नाम मात्र से ही सबके चेहरे पर हँसी खिल जाती है ... पर इन सब खुशियों के बीच चंद बच्चे ऐसे भी हैं जिनके पास ना तो नए कपड़े हैं , ना ही ये पटाखे और मिठाई खरीदने के पैसे ... उनकी ज़िन्दगी में कोई रौशनी नहीं है ... सच पूछिये तो उनकी बेबसी और तमाम सवालों से भरी आखें देख कर कभी कभी ये सब खुशियाँ बड़ी बेमानी , बड़ी बेमत...