एक कहानी माँ की
रात हमारी आँखों से फिर बही कहानी माँ की । खिड़की से सटकर महकी जब रात की रानी माँ की । कढ़ी भात खट्टी चटनी और दाल परोंठे गोभी के, दही दूध अदरक लहसुन सी गंध सुहानी माँ की । बेसन की सोंधी रोटी-सा यह भी मुझको याद अभी, पीठ फेरकर पानी पीकर भूख छुपानी माँ की । घर के सुख में उसने खुद को पूरा - पूरा बाँट दिया, दो जोड़े सूती धोती में गई जवानी माँ की । आज अचानक उसको देखा अम्मा जैसी लगती थी, चाची के टूटे छज्जे पर दही मथानी माँ की । बाबा की वह गिरी हवेली दादी का तुलसी का चौरा, पिछवाड़े की नीम भी जाने उमर खपानी माँ की । जब गैया की पूँछ थी खींची गौरैया का अंडा फोड़ा, मेरे साथ नहीं सोना यह सज़ा सुनानी माँ की । छोड़-छाड़ कर चले गए सब किसको उसका याद रहा, बस बाबू को याद रही वो चिता जलानी माँ की । जब बच्चे के होने में मै तड़फ - तड़फ कर रोई थी, तब देखी थी अपने जैसी पीर उठानी माँ की । मैंने माँ की झुर्री को धीरे- धीरे ओढ़ लिया, कैसे मै बिटिया से कह दूँ बात पुरानी माँ की ।